देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है, न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है, दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे, सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है...!
आत्मीय!वन्दे मातरम.दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम देखिये, जुड़िये, उपयुक्त लगे तो अपने चित्र व् रचनाएँ प्रकाशनार्थ दीजिये. आपका चिटठा रोचक है. फिर आऊंगा.
Bahut achha
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2 टिप्पणियां:
आत्मीय!
वन्दे मातरम.
दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पॉट.कॉम देखिये, जुड़िये, उपयुक्त लगे तो अपने चित्र व् रचनाएँ प्रकाशनार्थ दीजिये.
आपका चिटठा रोचक है. फिर आऊंगा.
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