देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है,
न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है,
दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे,
सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है...!
रविवार, 13 दिसंबर 2009
अले, अले... मेरा बेटा!...
अभिनव प्रतिभा पर ममता...
राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले अभिनव बिंद्रा को जब पुरस्कृत किया तो उनकी ममता कुछ इस तरह फूट पड़ी और वे अपनी ममता को नही दबा सकीं...
एक कहानी…
जिसमें कोई किरदार नहीं,
एक बादल जिसमें
नमी की एक बूँद नहीं,
एक समन्दर…
जिसमें सब कुछ है,
जिसके लिए कुछ नहीं,
और ऐसा ही सब कुछ…
नाम है "रामकृष्ण गौतम"...
एक अधूरा ख्वाब!
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