बुधवार, 16 दिसंबर 2009

न घर है न ठिकाना...




हमें चलते जाना है... बस चलते जाना...

रविवार, 13 दिसंबर 2009

अले, अले... मेरा बेटा!...

अभिनव प्रतिभा पर ममता...








राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटील ने ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले अभिनव बिंद्रा को जब पुरस्कृत किया तो उनकी ममता कुछ इस तरह फूट पड़ी और वे अपनी ममता को नही दबा सकीं...

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

ये आराम का मामला है...



नदिया के किनारे हरे - हरे पेड़ की छाँव के तले चौपाए कुर्सी पर बैठकर आराम फरमाते गोरे...



मुंबई में आयोजित "कार एक्सपो" के दौरान लगाए गए विज्ञापनोंके बोर्ड के सामने लगी कुर्सी पर बैठकर गहरी नींद का मज़ा लेते घुमंतू...



आए थे खरबूजे बेचने, जब काफी देर तक कोई खरीदार नही आया तो सोचा थोड़ा आराम फार्म लें...



इनकी तो बात ही निराली है, अरे भई! इन्होने पुल पर पलंग जो सजा ली है...

शनिवार, 28 मार्च 2009

पुराने लेकिन इसी ज़माने के...



चेन्नई के एम्बुलेंस 1940




चेन्नई मरीना बीच 1913




वीटी स्टेशन मुंबई 1894




मैलापोर चेन्नई 1939






कार शोरूम चेन्नई 1913







मद्रास बैंक 1935







अंडमान 1917





ट्रेन 1895












सोमवार, 9 मार्च 2009

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

रविवार, 25 जनवरी 2009

ऐसा क्यों...?






ये तीनो तस्वीर एक दूसरे से कहीं भी रिलेटेड नही हैं पर...
इनका कही न कही कोई ताल्लुक तो ज़रूर है...!
क्योंकि ये तीनो तस्वीरें हमारे देश की हैं!

हाय रे बेबसी!


ज़रा इस तस्वीर पर गौर कीजिए... और बताइए कि इसमें आपको क्या नज़र आता है...?
आप निश्चित ही इस तस्वीर में बेबसी और लाचारी देखेंगे...
मगर इसके पीछे एक और बात छिपी हुई है...
इस तस्वीर को अपने कैमरे में क़ैद करने वाला छायाकार इसी तस्वीर के लिए पुलित्ज़र अवार्ड से सम्मानित हुआ था... उसने जब इस तस्वीर को अपने कैमरे में क़ैद किया था तब उसके अन्दर की मानवता मर चुकी थी... क्योंकि वो इस तस्वीर को क़ैद करने के बाद के बारे में सोच रहा था... और जैसा उसने सोचा वैसा ही हुआ... उसे पुलित्ज़र पुरस्कार मिला... लेकिन बाद में अचानक उसके अन्दर का मानव जगा... और उसने पश्चाताप स्वरुप आत्महत्या कर ली... आत्महत्या करने के पहले उसे लगा कि अगर उसने इस बच्चे की ओर ध्यान दिया होता तो शायद वह कुछ और दिन जी जाता!!!

नज़रे इनायत!