देखो न! यह मेरी कैसी तक़दीर है, न तुम हो न तुम्हारी कोई तस्वीर है, दिन-रात तेरा ग़म ही ग़म है मुझे, सीने में साँसों की टूटी हुई ज़ंजीर है...!
wah gautam ji tasvire to aapki hi tarh hain. kamal.
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