हमें चलते जाना है... बस चलते जाना...
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
रविवार, 13 दिसंबर 2009
शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009
ये आराम का मामला है...
नदिया के किनारे हरे - हरे पेड़ की छाँव के तले चौपाए कुर्सी पर बैठकर आराम फरमाते गोरे...
मुंबई में आयोजित "कार एक्सपो" के दौरान लगाए गए विज्ञापनोंके बोर्ड के सामने लगी कुर्सी पर बैठकर गहरी नींद का मज़ा लेते घुमंतू...
आए थे खरबूजे बेचने, जब काफी देर तक कोई खरीदार नही आया तो सोचा थोड़ा आराम फार्म लें...
इनकी तो बात ही निराली है, अरे भई! इन्होने पुल पर पलंग जो सजा ली है...
शनिवार, 28 मार्च 2009
पुराने लेकिन इसी ज़माने के...
सोमवार, 9 मार्च 2009
गुरुवार, 29 जनवरी 2009
रविवार, 25 जनवरी 2009
हाय रे बेबसी!
ज़रा इस तस्वीर पर गौर कीजिए... और बताइए कि इसमें आपको क्या नज़र आता है...?
आप निश्चित ही इस तस्वीर में बेबसी और लाचारी देखेंगे...
मगर इसके पीछे एक और बात छिपी हुई है...
इस तस्वीर को अपने कैमरे में क़ैद करने वाला छायाकार इसी तस्वीर के लिए पुलित्ज़र अवार्ड से सम्मानित हुआ था... उसने जब इस तस्वीर को अपने कैमरे में क़ैद किया था तब उसके अन्दर की मानवता मर चुकी थी... क्योंकि वो इस तस्वीर को क़ैद करने के बाद के बारे में सोच रहा था... और जैसा उसने सोचा वैसा ही हुआ... उसे पुलित्ज़र पुरस्कार मिला... लेकिन बाद में अचानक उसके अन्दर का मानव जगा... और उसने पश्चाताप स्वरुप आत्महत्या कर ली... आत्महत्या करने के पहले उसे लगा कि अगर उसने इस बच्चे की ओर ध्यान दिया होता तो शायद वह कुछ और दिन जी जाता!!!
मंगलवार, 20 जनवरी 2009
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